History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 73

जिस समय सीमाक्षेत्र पर गुर्जर प्रतिहार के लोग, अरब देश के व्यापारियों द्वारा किये जा रहे अन्याय के विरुद्ध स्थानीय व्यापारियों के हित में अनवरत रूप से लड रहे थे तब उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदी राष्ट्रकूट के लोग सनातन धर्म की रक्षा करने के स्थान पर इन्ही अरबवासियों को कई प्रकार की छूट दे रहे थे। यहां तक कि पूरे अरब देश में वहां की मूल संस्कृति को पूर्ण विनाश करने से पहले ही वहां के कई मुस्लिम समुदाय भारत में आकर बस चुके थे। हिन्दुओ ने कभी भी उन्हे अपने धर्म प्रचार करने तथा स्थानीय लोगों का उत्साह के साथ धर्मांतरण करने से नहीं रोका। गुजरात के जयसिंह सिद्धराज (सन् 109

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 72

महाभारत में दुर्योधन वध के पूर्व श्री कृष्ण युधिष्ठिर को समझाते है कि युद्ध में कपटी, चालाक तथा दुष्ट दुश्मन को उसी के तौर तरीकों से हराना आवश्यक हो जाता है[1]

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 71

जब तक भोज जीवित रहा, गजनी कुछ विशेष प्राप्त कर पाने में सफल नहीं हो सका किंतु भोज को अनेक सनातन धर्मियों ने ही मिलकर युद्ध भूमि में मार दिया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 70

जो महिलाए उनके लिए अप्राप्य थी जैसे कि रानी रूपमती, रानी जयवंती, रानी दुर्गावती तथा अन्य भी उन्हे बादशाहों की अतृप्त वासना की आग में जलना पड़ा। इस प्रकार के अनेक विवरण अबुल फजल से लेकर विन्सेंट स्मिथ द्वारा लिखे गये है। 

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 68

भारत में हम ऐसे अनेक साम्राज्यो के उदाहरण पाते है कि एक क्षेत्र के साम्राज्य का आधिपत्य किसी अन्य क्षेत्र पर स्थापित हुआ हो। जैसे नेपाल और मिथिला के शासक सेन वंश तथा उत्तरभारत के सोलंकी लोग, कर्नाटक क्षेत्र से यंहा स्थापित हुए थे। इसी प्राकर राठोड़ वंश भी कर्नाटक के राष्ठ्रकूटों के वंशज है। इसी प्रकार गंगा के तटवासी गंग लोग दक्षिणी कर्नाटक के शासक बन गये थे। विजयनगर साम्राज्य के पतन के उपरांत नायक राजाओं द्वारा आंध्र, तमिलनाडु में प्रतिस्थापित हो कर दक्षिणांध्र – युग के रुप में उभरा।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 67

रेड्डियों का विजय घोष तथा गजपतियों का सामर्थ्य

प्रतापरुद्र के अवसान के उपरांत आंध्र में रेड्डी राजाओं ने मुस्लिम आक्रमणों का सामना किया था। इनमें वेमारेड्डी तथा उसका अनुज मल्लारेड्डी मुख्य थे। चौदहवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों से आंध्र को सुरक्षित रख पाने में उनकी भूमिका प्रशंसनीय रही।

The Yajnadevam Paper on the Sindhu-Sarasvati Valley Script: An Interpretative Overview

The Yajnadevam paper is a recent research publication that presents a novel and pioneer approach to deciphering the Sindhu-Sarasvati Valley Script (SSVS), which has famously evaded the grasp of multitudes of previous researchers. The vast variety of signage, rarity of long inscriptions, and the lack of a Rosetta Stone—a multiscript inscription containing the same information to facilitate referral—have made this field nigh unassailable for many a decade.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 66

प्राचीन आंध्र में हमें इस प्रकार के क्षात्र भाव के दर्शन नहीं होते हैं। वहां के प्रथम शासक सातवाहन लोग थे किंतु उन्होंने पूरे दक्षिण भारत पर शासन किया था। आंध्र में वही के स्थानीय शासकों में काकातीय वंश प्रमुख है गणपतिदेव (1198-1262) काकतीय राजवंश का मुख्य शासक रहा है। बाल्यावस्था में ही उसे यादवों ने बंदी बना लिया था किंतु उसने स्वयं को स्वतंत्र कर अपना एक अलग साम्राज्य खड़ा कर लिया। यह काकतीय साम्राज्य गणपतिदेव के प्रयासों के कारण लगभग सौ वर्षों के कुछ अधिक समय तक टिका रहा।