अनेक अवसरों पर जब मुस्लिम सेना का पाशविक कृत्य अपने चरम पर था, भारत भूमि में साहसी वीर निरंतर रूप से होते रहे।
एक मुस्लिम लेखाकार अल इद्रिसी कहता है – “भारतीय व्यापारी अपनी न्याय संगत नीति, ईमानदारी, नैतिकता तथा कार्य कौशल के कारण प्रसिद्ध है। मार्को पोलो ने भी दक्षिण गुजरात के व्यापारियों की प्रशंसा की है”। तेरहवीं शताब्दी के यात्री मार्को पोलो का दक्षिण गुजरात के व्यापारियों के प्रति कथन है -” यह बनिये-ब्राह्मण विश्व में सबसे अधिक विश्वसनीय है तथा श्रेष्ठ हैं, वे कभी झूठ नही बोलते, वे जो भी करते है सर्वथा सत्य ही कहते है”।
इससे हम इस्लामिक साम्राज्यो से पूर्व के भारत की स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं। भारतीय व्यापारी समुदाय जो संपूर्ण विश्व के साथ संपर्क में था, अपने व्यापारिक नैतिक मूल्यों की प्रतिबद्धता के लिए अत्यंत आदरणीय था। सनातन धर्म में प्रारम्भ से ही ऐसी व्यवस्था का निर्माण और संरक्षण किया गया था। क्षात्र भाव इस व्यवस्था को दृढ़ता से बनाये रखने में सदैव तत्पर रहा था जो स्वयं ब्राह्म के आदर्श से परिचालित था।
अलाउद्दीन खिलजी तथा तैमूर की निरंकुश क्रूरता
अलाउद्दीन खिलजी के इस्लामिक शासन काल में भारत ने जिस क्रूरता और आतंक का तांडव देखा वह अकल्पनीय था। वह शक्तिशाली तथा समर्थ था किंतु उसकी सारी शक्ति और कौशल ने प्रजाजनों को अकथनीय यंत्रणा और यातना ही दी। भारत में इस्लामिक साम्राज्य की दृढ़ स्थापना करने वाला वह पहला बादशाह था। किंतु वह बीस वर्षों से अधिक समय तक शासन नहीं कर पाया। उसके उपरांत तुगलक साम्राज्य आया वह भी दस वर्षों से अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सका। यद्यपि यह शासक लम्बे समय तक नहीं रह सके फिर भी उन्होंने जिस स्तर की क्षति पहुंचाई, जिस स्तर पर हिंसा की और लोगों को यातनाएं देकर उन्हें लूटा वह स्वयं में क्रूरता की चरम सीमा थी।
जैसे कि एक कहावत है कि ‘यद्यपि मै एक घर बनाने में असमर्थ हूं किंतु उसे तोड़ने में पूर्णतः समर्थ हूं[1]’, उसी प्रकार यह मुस्लिम शासक लोगों के लिए संकटों का कारण बनें। जिस प्रकार एक बूंद विष पूरे पात्र के दूध को विषाक्त बना देती है, इन शासकों का अल्पकालीन शासन भारत के लिए एक दीर्घकालिक कुप्रभाव छोड़ गया।
अनेक मुस्लिम योद्धा तेजी से उभरे और शासनासीन हुए किंतु उसी तेजी से उसका पराभव भी होता गया। तुगलकों के कमजोर होने पर कम्बोज के रास्ते तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि उसकी क्रूरता, हिंसा और पाशविकता की तुलना नहीं की जा सकती है। अपनी आत्मकथा में तैमूर स्वयं स्पष्ट रूप से लिखता है – ‘मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य काफिरों को समाप्त करना है, मुझे सब जगह इस्लाम की स्थापना करना है, मै एक गाज़ी हूं – अपने धर्म के लिए लड़ने वाला एक योद्धा हूं, मै काफिरों से संबंधित सभी चीजों को लूट लूंगा, उसका विनाश कर दूंगा’ । आर. सी. मजूमदार ने अपने लेखन में इसका संदर्भ दिया है। तैमूर ने जब भारत पर आक्रमण किया था तब दिल्ली का साम्राज्य छिन्न भिन्न हो रहा था।
तैमूर ने विस्तार से अपने सभी आतंकित करने वाले दुष्कृत्यों तथा काले कारनामों का विवरण लिखा है – यह इतिहासकारों के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ है अन्यथा उनके द्वारा किये गये अमानवीय तथा नीच कृत्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस्लाम के नाम पर उसने जिस सीमा तक हिंसा, क्रूरता, हत्याएं, लूटपाट, विनाश लीला तथा निरंकुश बलात्कार आदि को अंजाम दिया इसकी प्रकृति की गहराई को समझ पाना भी बडा मुश्किल है।
जब तैमूर ने दिल्ली पर आक्रमण किया, उसे ज्ञात हुआ कि जब वह कमजोर स्थिति में था तब कुछ लोगों ने खुशियां प्रकट की थी, इससे क्रोधित हो कर उसने एक लाख लोगों को एकत्रित कर उन सबकी हत्या कर दी। दूसरों को पीड़ा पहुंचा कर मजा लेने की उसकी मनोवृत्ति इस सीमा तक थी कि उसने एक अत्यंत सरल और सात्विक व्यक्ति को जो एक चिड़िया तक को कष्ट नहीं दे सकता था, के हाथों में छुरा देकर उसे पन्द्रह काफिरों की हत्या करने को बाध्य किया।
आर. सी. मजूमदार लिखते हैं –
आजकल तैमूर द्वारा किये गये दुष्कृत्यों की विशालता और गंभीरता को न्यूनतम दर्शक इसका स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया जा रहा है किंतु इस ग्रंथ में स्वयं तैमूर द्वारा लिखित विस्तृत विवरण को प्रस्तुत किया गया है जिसमें उसने अपने अकथनीय हिंसात्मक अत्याचारों को दर्शाया है
हमारे ‘नेताओं’ तथा ‘बुद्धिजीवियों’ ने मुस्लिमों द्वारा किये गये अत्याचारों पर आंख मूंद कर उसकी लीपापोती करने का व्यापक रूप से प्रयास किया है। इसके कुछ और भी पक्ष देखे जा सकते है, -
तैमूर स्वयं लिखता है कि जब उसने देपालपुर को लूटा तब उसने एक साथ दस हजार लोगों की हत्या मात्र एक घण्टे में करने का आदेश दिया था तथा उसने यह सुनिश्चित किया कि उसका पालन किया गया। उसने सब घरों से अनाज लूट कर उन सब में आग लगवा दी थी।
उसने दो हजार जाटों की हत्या कर उनकी महिलाओं और बच्चों को बंदी बना कर गुलाम बना लिया। उसने हर राजपूत की हत्या की जो उसके समक्ष आया और उनकी स्त्रियों तथा बच्चों को घरों में कैद कर लिया। उसने मौलाना नसीरुद्दीन उमर से पन्द्रह मूर्तिपूजकों की हत्या करने का आदेश संपन्न करवाया। यह तो मात्र तैरते विशाल हिमखंड का शीर्ष ही है।
इतिहासकारों का यह सोचा समझा मत है कि मात्र एक आक्रमण में ही तैमूर ने भारत के लोगों पर जो अत्याचार, आतंक, हिंसा, हत्याए आदि की थी उसका अन्य उदाहरण मिलना कठिन है।
वास्को डि गामा के अत्याचार
इसी प्रकार के अत्याचार ईसाई समुद्री डाकू वास्को डी गामा द्वारा अपने पूरे सामर्थ्य के साथ हिंदुओं पर किये गये थे। आर. सी. मजूमदार ने इसका विस्तृत विवरण दिया है।
केरल में कल्लिकोट (कालीकट) का राजा सामुद्री (जमोरिन) था। उसका नाम समुद्र संभव या सामुद्री था जिसका बिगड़ा स्वरुप जमोरिन है। शासन द्वारा नियुक्त इतिहासकारों ने अनेक अवसरों पर हिंदुओं के साथ धोखा करते हुए बिगड़े नामों का ही उल्लेख किया है। पश्चिमी नामों का सतत रूप से व्यापक उपयोग होने के कारण लोग भ्रमित हो जाते है कि जमोरिन का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं रहा होगा। ऐसी प्रतीति करवाई गई है कि वह एक विदेशी शासक था जिसे लोगों ने स्वीकार कर लिया था और शांति से रह रहे थे। इसी परिप्रेक्ष्य में वास्को डी गामा को एक यात्री निरूपित किया ताकि लोगों की दृष्टि में उसके प्रति आदर भाव जागृत हो सके।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]न शक्तोऽहं गृहारम्भे शक्तोऽहं गृहभञ्जने