History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 66

प्राचीन आंध्र में हमें इस प्रकार के क्षात्र भाव के दर्शन नहीं होते हैं। वहां के प्रथम शासक सातवाहन लोग थे किंतु उन्होंने पूरे दक्षिण भारत पर शासन किया था। आंध्र में वही के स्थानीय शासकों में काकातीय वंश प्रमुख है गणपतिदेव (1198-1262) काकतीय राजवंश का मुख्य शासक रहा है। बाल्यावस्था में ही उसे यादवों ने बंदी बना लिया था किंतु उसने स्वयं को स्वतंत्र कर अपना एक अलग साम्राज्य खड़ा कर लिया। यह काकतीय साम्राज्य गणपतिदेव के प्रयासों के कारण लगभग सौ वर्षों के कुछ अधिक समय तक टिका रहा।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 65

चोल लोगों पर यह बड़ा आरोप लगाया जाता है कि वे वैष्णव विरोधी थे। इसको प्रमाणित करने के कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। राजराज तथा राजेन्द्र चोल दोनों ने ही अनेक विष्णु मंदिरों का निर्माण करवाया था। नागपट्टनं में उन्होंने बौद्ध विहार का निर्माण करवाया था। पुडुकोट्टई जिले के सित्तनवसल में जो सिद्धों का केंद्र स्थान है, जैनों की सुरक्षा तथा सहयोगार्थ उन्होंने खुल कर मदद की। उसी स्थान से सिद्ध-प्रणाली की औषधि का प्रारम्भ हुआ। तमिल साहित्य में जैन लोगों का योगदान भी अत्यधिक रहा है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 64

पाप्ड्या, चोल एवं चेर

चोल लोगों का शासन तमिलनाडु के पूर्वी तट पर था, पाण्ड्याओं का दक्षिण भारत के मध्य क्षेत्र में तथा चेर लोगों ने पश्चिमी तट पर शासन किया । इन तीनों को ‘मुवेन्दिदर’ (तीन शासक) के नाम से जाना जाता रहा है। जहां चेर साम्राज्य था वह क्षेत्र आज का केरल प्रांत है। केरल द्वारा क्षात्र परंपरा को कोई सीधा योगदान नहीं दिया गया तथापि ज्ञानार्जन, अध्ययन और अध्यापन को पोषित करने और उसके अनुकूल परिवेश प्रदान कर उसने क्षात्र के एक अन्य पक्ष को अत्यधिक दृढ़ता प्रदान की।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 63

कंपण द्वितीय का उत्तराधिकारी देवराय प्रथम था और उसका पुत्र विख्यात देवराय द्वितीय अथवा प्रौढ़देवराय था जो प्रौढप्रतापी’ की उपाधि से सम्मानित था। उसने बचे हुए दुश्मनों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। उसने विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं को और सुदृढ़ करते हुए नौसेना की शक्ति को भी बढ़ाया । उसने गोवा तक फैले समुद्री तट को पुनर्जीवित कर नये बंदरगाह तथा मालगोदामों का निर्माण करवाया। उसकी सेना का नेतृत्व आक्रामक लकण्ण दण्डेश कर रहा था। उसने पूरे साम्राज्य में एक नव चेतना का जागरण अभियान चलाकर लोगों को जागृत किया। उसने कला, साहित्य, धर्मशास्त्रों तथा विद्वानों को प्रश्रय तथा

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 61

राष्ट्रकूट साम्राज्य का हरा भरा विस्तार

कन्नड लोगों के हृदय में बसने वाला एक प्रसिद्ध नाम नृपतुंग का है। श्री विजय के साथ अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कविराजमार्ग’ की रचना करने के कारण अमोघवर्ष नृपतुंग की प्रसिद्धि अमर हो गई। यद्यपि वह क्षात्र प्रतिष्ठा संपन्न महान योद्धा था किंतु शांतिकाल में भी साम्राज्य को संतुलित प्रबंधन के साथ सम्हालने में वह सक्षम था।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 60

चालुक्य विक्रमादित्य का उत्कृष्ट शासन

कर्नाटक के प्रमुखतम सम्राटों में कल्याण चालुक्य राज सम्राट विक्रमादित्य षष्टम का नाम स्मरणीय है। वह सोमेश्वर प्रथम का पुत्र था। यह उसका सौभाग्य था कि विद्यापति बिल्हण जैसा कवि उसके दरबार में था जिसने उसकी उपलब्धियों को सदा के लिए अमर बना दिया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 59

हमारी दुर्बलताएँ

मुख्य रूप से हमारी दुर्बलता के दो पक्ष रहे है :- प्रथम तो यह कि हमने अपने शत्रुओं को हमारे द्वार तक आने दिया तथा दूसरा यह कि हमने युद्ध के संबंध में विकसित रणनीतियों तथा शस्त्र विज्ञान की नवीनतम जानकारियों से स्वयं को अवगत नहीं रखा। इसी के साथ हमारे आपसी कलह ने इन दो कमजोरियों को हमारी पराजय का मुख्य कारण बनाया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 58

ह्वेनसांग के अनुसार शशांक ने गया में स्थित बोधि वृक्ष को कटवा दिया था तथा पास के मंदिर से बुद्ध की प्रतिमा को हटाने का आदेश दिया था। किंतु इस संबंध में आर.सी.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 57

शौर्य काल

पिछले कुछ समय में लिखे गये भारतीय इतिहास में अनेक घटनाओं तथा प्रकरणों को अवांछित रूप से सम्मान प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बतलाया गया है। ऐसे अनेक विवरण दिये गये है। जिनका हमारे इतिहास में अस्तित्व ही नही था और इस प्रकार कपट पूर्वक लोगों को भ्रमित तथा गुमराह किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे झूठे कथन सत्य को जानने में सबसे बडी बाधा उपस्थित करते हैं। आज की हमारी अनेक इतिहास की पाठ्यपुस्तके इसी प्रकार के कपटयुक्त लेखन के वर्ग में आती है।