February 2024

चाणक्य कोई धर्मान्ध व्यक्ति नहीं था। वह स्वयं आसानी से सिंहासन पर बैठ सकता था जैसा कि उन दिनों ब्राह्मणों का राजा बनना प्रचलन में था। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद पुष्यमित्र शुंग और उसके वंशज शासक बने और उनके उपरांत काण्व लोगों ने राज किया। यह सभी ब्राह्मण थे। चाणक्य ने पद प्रतिष्ठा की कभी परवाह नही की। उसका दूरदृष्टि पूर्ण लक्ष्य ब्राह्म और क्षात्र के समन्वय द्वारा देशवासियों के कल्याण के सुनिश्चित करना था। इस पृष्ठभूमि में जब हम अपने देश की...
What about the jñānī? He too has to perform karma but instructing him is not necessary. He performs karma without any guidance. Karma is imperative as long as the body exists. Life in the physical plane implies contact with the world. Even the most knowledgeable cannot escape it. If that is the case, what is so unique about a jñānī’s knowledge? The answer is that a jñānī’s karma does not result in individual results for him. It was mentioned...
Ocean
ಅಲಂಕಾರ ಇನ್ನು ಅಲಂಕಾರಗಳತ್ತ ದೃಷ್ಟಿ ಹಾಯಿಸುವುದಾದರೆ, ಪೈಗಳಿಗೆ ಶಬ್ದ ಮತ್ತು ಅರ್ಥಗಳ ಸ್ತರದ ಅಲಂಕಾರಗಳೆರಡೂ ಪ್ರಿಯವೆಂದು ತಿಳಿಯುತ್ತದೆ. ತತ್ತ್ವತಃ ಛಂದಸ್ಸು ಕೂಡ ಶಬ್ದಾಲಂಕಾರವೇ ಆದರೂ ಅದನ್ನು ಪ್ರತ್ಯೇಕವಾಗಿ ಪರಿಗಣಿಸುವಷ್ಟು ಆ ಶಾಸ್ತ್ರ ಬೆಳೆದಿದೆ. ಅಲ್ಲಿಯೇ ಆದಿಪ್ರಾಸ ಮತ್ತು ಅಂತ್ಯಪ್ರಾಸಗಳಂಥ ಮೂಲಭೂತ ಶಬ್ದಾಲಂಕಾರಗಳೂ ವಿವೇಚನೆಗೆ ಬರುತ್ತವೆ. ಏಕೆಂದರೆ ಸಾಂಪ್ರದಾಯಿಕ ಬಂಧಗಳಲ್ಲಿ ಆದಿಪ್ರಾಸ ಅನಿವಾರ್ಯ. ನವೀನ ಬಂಧಗಳಲ್ಲಿ ಅಂತ್ಯಪ್ರಾಸವೇ ಅವುಗಳ ಛಂದೋನಿರ್ದಿಷ್ಟತೆಗೆ ದಿಕ್ಸೂಚಿ. ಹೀಗೆ ಈ ಎರಡು ಪ್ರಕಾರಗಳ ಪ್ರಾಸಗಳನ್ನು ಛಂದಸ್ಸಿನ ವಲಯಕ್ಕೆ...
Lava-kusha
Lakṣmaṇa, whose mind was distressed after dropping off Sītā on the banks of the river Gaṅgā, watched her being taken into the āśrama. He told his counsellor and charioteer Sumantra, “Just imagine how much pain Rāma might be experiencing on account of Sītā’s agony. Can there be any greater suffering for Rāghava after he has sent away Janaka’s daughter of flawless character? It is evident that this separation of Rāma from Sītā is a play of the...
जितनी स्वतंत्रता की आवश्यकता है उतनी ही आवश्यकता हमें संयम और आत्मानुशासन की भी है। जब हम नियंत्रणों का सम्मान करना जान लेंगे तब ही हमे अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त हो सकती है। निरंकुश स्वतंत्रता, अनियंत्रित इच्छाविलास, मनमौजी सनक लम्बेसमय तक उपयोगी सिद्ध नही हो सकती है। इसका अनुभव हम भारत पर सिकंदर के आक्रमण के प्रसंग में देख चुके हैं। पौरव (ग्रीक वर्णनानुसार पोरस) सिकंदर से हार गया था। ऐसा कहा जाता है कि पौरव एक गणतंत्र का अधिपति था यद्यपि इसमें...
Fire
Let us now remember and discuss these in some detail. 1) The pre-eminence of the self: The ātmā (self) is the essence of all beings. Whenever man thinks, "I","me", the referent of the "I" is the jīva. Both the jīva and its support and instrument - the body with sense organs and the mind - are referred to as the ātmā. The ātmā marked by an association with the body-sheath is known as the jīvātmā. In principle, the ātmā is distinct from the...
समस्यायाः आकारः समस्यावाक्यं वृत्तबद्धमेव भवेत् । प्रायेण तद्वृत्तपादेन निबद्धं क्रियते ।[1] वृत्तपादेऽपि एकदेशमात्रं समस्यावाक्येन योक्तुमर्हति प्रष्टा ।[2] क्वचित् पादद्वितयव्यापिन्यपि भवति समस्या । अनन्तरोक्तमनुष्टुभि एव सङ्गच्छते, तस्या अल्पकुक्षित्वात् ।[3] समस्यावाक्यमसङ्गतार्थकम् अनर्थकं वा स्यादिति प्रागुक्तमेव । असङ्गतिश्च नानाविधं शक्या परिकल्पयितुम् । तद्यथा[4] –   क्र.सं. असङ्गतिप्रकारः उदाहरणम्...
समस्याख्यानम् अवधानस्य प्रमुखेष्वङ्गेष्वन्यतममनन्यञ्च । अनर्था असङ्गतार्था वा काचन पद्यपङ्क्तिः कविसम्मुखे प्रक्षिप्यते या च तेन प्रत्यग्रप्रतिभया अर्थसङ्गतिर्यथा स्यात् तथा पूरणीया । अयं च काव्यप्रकारः चिरात् प्रथतेतरां वाङ्मयप्रपञ्चे । सोऽयं प्रकारो न केवलं संस्कृते, प्रत्युत बह्वीषु भारतीयभाषासु प्राप्तप्रतिष्ठो विराजति । विशेषतः चित्रकाव्यप्रकारेषु अमुष्य अग्रपूजा सर्वसम्मता । वात्स्यायनेन चतुःषष्ट्यां कलासु काव्यसमस्यापूरणम् अपि सन्दृब्धं...
Seeta in Exile
Upon hearing the words of the sage, Rāma said, “There is no match for Hanūmān’s valour, commitment, sincerity, and strength. He found Jānakī in Laṅkā, reduced the city to ashes, and killed innumerable rākṣasas in the battle that broke out thereafter. If not for him, I could have never recovered Sītā and vanquished Rāvaṇa. When the hostility broke out between Vālī and Sugrīva, why didn’t Hanūmān merely burn up Vālī? Tell me everything about this...
यत्र तत्र इस बात के भी संदर्भ मिलते हैं कि ग्रीक महिलाओं को भारत में काम पर रखा जाता था। श्यामिलक की पुस्तक ‘पाद-ताडितक-भाण’ में कुसुमपुरा में रहने वाले ग्रीक व्यापारियों का वर्णन है। ’मालविकाग्निमित्र’ में कालिदास ने लिखा है – “सिंधु नदी के दूर छोर पर पुष्यमित्र शुंग के पौत्र वसुमित्र ने ग्रीक सेना के विरुद्ध संघर्ष किया था”, किन्तु इन सब में कहीं भी सिकंदर का सन्दर्भ नहीं है। यह आक्रमण सिकंदर के उत्तराधिकारियों द्वारा उसकी मृत्यु के लगभग 150-...