भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 43

This article is part 43 of 59 in the series Kshatra Parampare in Hindi

गुप्तकाल का वास्तुशिल्प तथा मूर्तिकला

वास्तु शिल्प तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में गुप्तकाल में असाधारण कार्य हुआ था। आज भी गुप्तकालीन उपहार के रुप में अनेक गुफा मंदिर पाये जाते है [1]

हमारी परम्परा में ‘शील’ – एक व्यक्ति विशेष के चरित्र का द्योतक है, ‘शील’ से ही ‘शैली’ का उद्भव हुआ है। गुप्तकाल में स्थापित सुन्दरता तथा सौन्दर्यपरक मानदण्ड़ों की संवेदनशीलता हमें आज भी प्रभावित करती आ रही है। इसके सौन्दर्य में कुछ भी कमतर संशोधन के लिए कोई स्थान नहीं है। इसके सौन्दर्य में असाधारण आन्तरिक शक्ति समाई है। गुप्तकाल शास्त्रीयता का पर्याय है। इसे हम गुप्तकाल के हर क्षेत्र में देख सकते हैं चाहे वह साहित्य हो, नृत्य हो, चित्रकला हो, मूर्तिकला या शिल्पकला हो अथवा विज्ञान हो[2]

हमारे पुराणों में वर्णित देवताओं को भौतिक मूर्ति रुप भले ही गुप्तकाल से पहले का रहा हो तथापि उन्होने इसको परिष्कृत करने में जिन वैचारिक कुशलता का उपयोग किया था वह आज तक अपखिर्तनीय है। इसका साक्षात भव्य उदाहरण उत्तरप्रदेश में बेतवा नदी के तट पर बना देवगढ़ का ‘दशावतार देवालय’ है। यंहा महाविष्णु आदिशेष पर सोये है और महालक्ष्मी उनकी चरणसेवा कर रही है, विष्णु की नाभि से निकले कमल पर ब्रह्म जी विराजमान है तथा इन्द्र, रुद्र, स्कंद तथा अन्य देवतागण अपने अपने विमानों से आकर भगवान विष्णु का दर्शन प्राप्त कर रहे हैं। यह सभी विवरण इन मूर्तिकला में प्रथम बार व्यक्त किये गये। स्कंद का वाहन मोर है, शिव का वाहन नंदी है, पार्वती सिंह पर सवार है। आदिशेष नाग के फनों की संख्या, ब्रह्म का विष्णु की नाभि से आये कमलनाल पर आसीन होने का तरीका आदि विस्तृत रुप से इस मूर्ति की कला में हम देख पाते है।

यह मूर्तिकला रवि वर्मा की चित्रकला की मूल प्रेरणा स्त्रोत रही है। अबनिन्द्रनाथ टेगोर के आरेखन, चन्दामामा तथा अमरचित्रकथा नामक पत्रिकाओं के चित्रांकन आदि का भी आदि स्त्रोत और प्रेरणा यही मूर्त शिल्प है। यह स्पष्ट है कि कला का यह प्रवाह सतत रुप से 1600-1700 वर्षों से बहता आ रहा है।

इस मूर्तिकला ने बुद्ध को भी गांधार कला शैली से भिन्न रुप में दर्शाया है। गुप्तकाल में गांधार शैली के कुछ मूल्यवान तत्वों का समावेश करते हुए उसे आदर्श कलात्मकता के साथ शुद्ध भारतीय मूल्यों के साथ प्रस्तुत करने का कार्य हुआ था। यह हर दृष्टि से एक अद्वितीय योगदान है। उस काल में शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध आदि मतपंथों के कभी न सुलइने वाले मतभेद नही थे।

गुप्तकाल के उदारवादी चरित्र का श्रेष्ठतम उदाहरण युनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल ‘बादामी’ है जंहा एक साथ शिव गुफा, विष्णु गुफा, जैन गुफा स्थित है। यह बादामी चालुक्यों का जीवन दर्शन था जो पॉचवीं से आठवीं शताब्दी तक फलता फूलता रहा क्योंकि यह गुप्त काल से प्रेरणा तथा ज्ञान प्राप्त करता रहा था। इसी प्रकार से एलोरा की लगभग चालीस गुफाओं में भी हम बौद्ध, जैन, शैव तथा वैष्णवों से संबंधित गुफाऍ देखते है। वे सभी समान रुप से सम्मानित रही। तथापि सूक्ष्म निरीक्षण पर यह स्पष्ट हो जाता है कि शिव – विष्णु की गुफा का सौन्दर्य तथा वैभव अत्यधिक प्रभावशील है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि जैन तथा बौद्ध कथानक में विविधताओं की संभावना तुलनात्मक रुप से कम है। निर्वाण-दीक्षा में बैटे जैन मुनि अथवा हीनयान पन्थ के निराकार स्वरुप को प्रदर्शित करने में किस प्रकार के दृश्यवैभव की कल्पना की जा सकती है ? तथा महायान पंथ में बोधिसत्व की उर्ध्व चेतना को दर्शानेवाली गुफा में एक रसता ते अवश्यम्भावी है। वास्तव में कला तथा सौन्दर्य भिन्नता के लिए उन्हे भी उत्कीर्णन हेतु अन्य साधनों का सहारा लेना पडा। कुछ स्थानों पर उन्होने यक्षों, गन्धर्वों, अप्सराओं, सिद्धों तथा जातक कथाओं से गुफा में उत्कीर्णन किया है। इससे करुण रस तो अवश्य जागता है किंतु कितने समय तक कोई इसका आनन्द ले सकता है ? अन्ततः प्रत्येक को शृङ्गार रस में आवश्यक रुप से लौटना होता है। इन सच्चाइयों की आवश्यकताओं को समझते हुए सनातन धर्म ने सभी को स्वीकार किया है [3]

कुमारगुप्त

कुछ तथा कथित ‘प्रख्यात’ इतिहास कारों ने गुप्त वंश को कलंकित करने के ध्येय से यह अनुचित दावा किया है – “कुमारगुप्त में शासन करने की कोई योग्यता नही थी, उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह किया था” किंतु कुमारगुप्त द्वारा चलाये गये सिक्के उसकी प्रशासकीय क्षमता और योग्यता के स्पष्ट प्रमाण है।

इसकी तुलना में मुहम्मद बिन तुगलक का उदाहरण है जिसने चमड़े के सिक्के चलाये थे और इसी से उसके शासनकाल की आर्थिक स्थिति का पता चल जाता है विशेष कर उसके साम्राज्य पर मंगोलों के आक्रमण के उपरांत [4]!

To be continued...

The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.

Footnotes

[1]मेरे वैयक्तिक मत में एलोरा मंदिर भारत का महान आश्चर्य है। यद्यपि इनका निर्माण राष्ट्रकूटों के शासन काल में हुआ था तथापि इसकी आवश्यक तकनीक, कौशल, कलात्मक कल्पना गुप्तकाल की विरासत है। इसी प्रकार अजन्ता, कर्ल, एलिफेन्टा और अन्य स्थानों पर भी हम भारतीय मूर्तिकला और शिल्प का मौलिक स्वरुप देख सकते है जिसका बीजारोपन गुप्तकाल में हुआ था।

[2]किंतु संभवतः ऐसा संगीत के क्षेत्र में नही था ऐसा उपलब्ध जानकारियों के आधार पर कहा जा सकता है।

[3]सनातन धर्म की यह स्वीकृति उसके सभी पक्षों में देखी जा सकती है। मै निरंतर रुप से यह कहता आ रहा हूं कि ब्रह्म का क्रिया क्षेत्र आदर्श दुरदृष्टि युक्त यथार्थ है। किंतु सांसारिक यथार्थ वैश्य का क्रिया क्षेत्र है। क्षात्र का कार्य आदर्श और व्यावहारिक यथार्थ को समन्वित करना है। सामान्य मनुष्य एक वैश्य है। वह क्या चाहता है ? जो कुछ भी हमारे पास है उसमें हंसी खुशी रहना, अच्छा खाना, अच्छा पहनना-बडे उच्च आदर्श उसकी समझ के बाहर है फिर भी वह आदर्श जीवन जीने वाले महापुरुषों के समक्ष – नतमस्तक होता है – उन्हे अपने प्राप्त संसाधनों की सीमा में मदद भी करता है और यही उसके जीवन का विशिष्ट मंत्र है।
ब्रह्म के क्षेत्र में निर्धारित उच्च आदर्शों की प्राप्ति हेतु निरंतर प्रयासों तथा आंतरिक संघर्षों के दौर से सामना होता है। मानव निर्मित समाज में इसे इसकी स्वाभाविक स्थिति में रख पाना दुष्कर है। यद्यपि यह स्वतंत्रता की स्थिति को प्राप्त करना चाहता है किंतु सामाजिक परिवेश उसे यह सुविधा प्रदान नही करता । बिना उचित व्यवस्था के एक अति उत्साही साधक भी अपने अस्तित्त्व को बना कर नहीं रख सकता। हम आसानी से कह देते हैं कि हम अपने आप से जी लेंगे किंतु इसके लिए भी अनेक प्रकार की व्यवस्थाओं को क्रियाशील होना पड़ता है। यदि कोई मात्र एक कप कॉफी पर जीवन यापन कर सकता है तो भी उसके कॉफी के बीज, उन्हे पीसने की मशीन, दूध, शक्कर, चूल्हा, बर्तन तथा पूरी प्रक्रिया संपन्न करपाने की व्यवस्था की आवश्यकत होती है। अतः विवेक पूर्ण तर्क संगत आदर्शवाद यह है कि हम अव्यावहारिक आदर्श तथा कटु यथार्थ के मध्य समन्वय तथा संतुलन की स्थिति बनाये रखें। क्षात्र ही यह विवेक पूर्ण तर्क संगत आदर्शवाद है। जिस क्षण हम इस सत्य की उपेक्षा करते है हम नष्ट हो जाते हैं। कोई भी देश या संस्कृति लम्बे समय तक इस सिद्धांत की उपेक्षा कर जीवित नही रह सकता है। पाश्चात्य विश्व चतुराई तथा धूर्तता से भरा है जंहा आदर्शवाद का कोई स्थान नहीं है । इस चतुराई की एक स्थिति पूंजीवाद है तथा दूसरी स्थिति हिंसक साम्यवादी चेहरा है। ऐसे में सनातन धर्म ही एक मात्र विकल्प है जिसमें ब्रह्म के प्रकाश में क्षात्र भाव के पथ का अनुगमन किया जाता है। हमारे पूर्वजों ने सूत्र दिया था ‘राजा प्रत्यक्ष-देवता’ – राजा ही प्रत्यक्ष देव है। किंतु आधुनिक कथित बुद्धि जीवियों तथा तर्क वादियों ने इसकी यह कह कर आलोचना की है कि ‘आप राजा को देवता कह कर धोखा दे रहे है तथा षड्यंत्र कर रहे हैं’ इस प्रकार का भ्रामक विवेचन पूर्ण तथा पथभ्रष्ट करने वाला है। हमने उस शासक को जो अपनी प्रजा को शांति, सुरक्षा, व्यवस्था, सुख साधन देते हुए आदर्श प्रशासन का संचालन करता है – उसे देवत्त्व प्रदान किया है – तो इसमें क्या भूल की है?

[4]कन्नड भाषी प्रसिद्ध नाटककार गिरीश कर्नाड़ ने इस मूर्ख तथा हिंसक सुल्तान पर एक भव्य नाटक की रचना करते हुए उसे एक आदर्श तथा अलौकिकता का प्रतीक बतलाया है। नाट्य कला की दृष्टि से यह एक अच्छा नाटक हो सकता है तथापि इसका कथानक अपने आप में पूर्वग्रहों से ग्रस्त तथा दागदार है। अतः इसका परिणाम क्या होगा ? बारहवीं शताब्दी के कन्नड कवि नागचंद्र ने कहा है – “यदि कवि अपनी रचना में एक साधारण व्यक्ति को मुख्यपात्र अर्थात नायक के रुप में महिमा मंडित करता है तो वह काव्य अथवा नाटक महत्ता प्राप्त नही कर सकता है किंतु वहीं दूसरी ओर श्रीराम जैसे महान उदारमना महापुरुष जैसा व्यक्ति यदि उसकी रचना का नायक है तो उसकी रचना को ख्याति तथा प्रशंसा मिलती है। सोने का हास गले की शोभा है किंतु लोहे की जंजीर ? मात्र कला कौशल ही पर्याप्त नही है, कथानक भी समान रुप से महत्त्व पूर्ण है ” (रामचन्द्र चरित पुराण 1.37)

Author(s)

About:

Dr. Ganesh is a 'shatavadhani' and one of India’s foremost Sanskrit poets and scholars. He writes and lectures extensively on various subjects pertaining to India and Indian cultural heritage. He is a master of the ancient art of avadhana and is credited with reviving the art in Kannada. He is a recipient of the Badarayana-Vyasa Puraskar from the President of India for his contribution to the Sanskrit language.

Translator(s)

About:

Prof. Dharmaraj Singh Vaghela served as the Head of the Department of Physics at the Government Arts and Science College, Ratlam of the MP Govt. Higher Education Department, until his retirement in 2004. He has published a number of papers in Plasma Physics in international journals. His papers have also appeared in the research journal of the Hindi Science Academy. Among other books, he has translated Fritjof Capra's best-selling work "The Tao of Physics" into Hindi. He has written a monograph in Hindi which explains the philosophical aspects of modern physics.

Prekshaa Publications

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the eighth volume of reminiscences character sketches of his ancestors teachers, friends, etc. and portrayal of rural life. These remarkable individuals hailing from different parts of South India are from the early part of the twentieth century. Written in Kannada in the 1970s, these memoirs go beyond personal memories and offer...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the seventh volume of reminiscences character sketches of prominent scholars, businessmen, hoteliers, as well as of the laity. These remarkable individuals hailing from different parts of South India are from the early part of the twentieth century. Written in Kannada in the 1970s, these memoirs go beyond personal memories and...

Poets on Poetics: Literary Aesthetics Envisioned by Sanskrit Poets uncovers the tenets of literary theory conceptualized by masters from Bharata to Jagannātha that are embedded in the works of poets from Vālmīki to Nīlakaṇṭha-dīkṣita. Poets typically present their insights in the form of suggestive verses and rarely as an organized body of facts. Their exposition, inchoate though it might seem...

India is a land of stories. It is a fountainhead of various story-telling traditions of Greater India, Asia, and Europe. The now lost Bṛhat-kathā of Guṇāḍhya was an inexhaustible treasure-trove of stories that influenced generations of listeners. Somadeva’s Kathā-sarit-sāgara is a twelfth century Sanskrit retelling of this grand compendium. To read this work is to understand the heart of the...

Among the many contributions of ancient Indians to world thought, perhaps the most insightful is the realisation that ānanda (Bliss) is the ultimate goal of human existence. Since time immemorial, India has been a land steeped in contemplation about the nature of humans and the universe. The great ṛṣis (seers) and ṛṣikās (seeresses) embarked on critical analysis of subjective experience and...

One of the two great epics of India and arguably the most popular epic in the world, the Ramayana has enchanted generations of people not just in Greater India but the world over. In less than three hundred pages The Essential Ramayana captures all the poetic subtleties and noble values of the original and offers the great epic in an eminently readable form that will appeal to the learned and...

The Bhagavad-gītā isn’t merely a treatise on ultimate liberation. It is also a treatise on good living. Even the laity, which does not have its eye on mokṣa, can immensely benefit from the Gītā. It has the power to grant an attitude of reverence in worldly life, infuse enthusiasm in the execution of duty, impart fortitude in times of adversity, and offer solace to the heart when riddled by...

Indian Perspective of Truth and Beauty in Homer’s Epics is a unique work on the comparative study of the Greek Epics Iliad and Odyssey with the Indian Epics – Rāmāyaṇa and Mahābhārata. Homer, who laid the foundations for the classical tradition of the West, occupies a stature similar to that occupied by the seer-poets Vālmīki and Vyāsa, who are synonymous with the Indian culture. The author...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the sixth volume of reminiscences character sketches of prominent public figures, liberals, and social workers. These remarkable personages hailing from different corners of South India are from a period that spans from the late nineteenth century to the mid-twentieth century. Written in Kannada in the 1970s, these memoirs go...

An Introduction to Hinduism based on Primary Sources

Authors: Śatāvadhānī Dr. R Ganesh, Hari Ravikumar

What is the philosophical basis for Sanātana-dharma, the ancient Indian way of life? What makes it the most inclusive and natural of all religio-philosophical systems in the world?

The Essential Sanātana-dharma serves as a handbook for anyone who wishes to grasp the...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the fifth volume, episodes from the lives of traditional savants responsible for upholding the Vedic culture. These memorable characters lived a life of opulence amidst poverty— theirs  was the wealth of the soul, far beyond money and gold. These vidvāns hailed from different corners of the erstwhile Mysore Kingdom and lived in...

Padma Bhushan Dr. Padma Subrahmanyam represents the quintessence of Sage Bharata’s art and Bhārata, the country that gave birth to the peerless seer of the Nāṭya-veda. Padma’s erudition in various streams of Indic knowledge, mastery over many classical arts, deep understanding of the nuances of Indian culture, creative genius, and sublime vision bolstered by the vedāntic and nationalistic...

Bhārata has been a land of plenty in many ways. We have had a timeless tradition of the twofold principle of Brāhma (spirit of wisdom) and Kṣāttra (spirit of valour) nourishing and protecting this sacred land. The Hindu civilisation, rooted in Sanātana-dharma, has constantly been enriched by brāhma and safeguarded by kṣāttra.
The renowned Sanskrit poet and scholar, Śatāvadhānī Dr. R...

ಛಂದೋವಿವೇಕವು ವರ್ಣವೃತ್ತ, ಮಾತ್ರಾಜಾತಿ ಮತ್ತು ಕರ್ಷಣಜಾತಿ ಎಂದು ವಿಭಕ್ತವಾದ ಎಲ್ಲ ಬಗೆಯ ಛಂದಸ್ಸುಗಳನ್ನೂ ವಿವೇಚಿಸುವ ಪ್ರಬಂಧಗಳ ಸಂಕಲನ. ಲೇಖಕರ ದೀರ್ಘಕಾಲಿಕ ಆಲೋಚನೆಯ ಸಾರವನ್ನು ಒಳಗೊಂಡ ಈ ಹೊತ್ತಗೆ ಪ್ರಧಾನವಾಗಿ ಛಂದಸ್ಸಿನ ಸೌಂದರ್ಯವನ್ನು ಲಕ್ಷಿಸುತ್ತದೆ. ತೌಲನಿಕ ವಿಶ್ಲೇಷಣೆ ಮತ್ತು ಅಂತಃಶಾಸ್ತ್ರೀಯ ಅಧ್ಯಯನಗಳ ತೆಕ್ಕೆಗೆ ಬರುವ ಬರೆಹಗಳೂ ಇಲ್ಲಿವೆ. ಶಾಸ್ತ್ರಕಾರನಿಗಲ್ಲದೆ ಸಿದ್ಧಹಸ್ತನಾದ ಕವಿಗೆ ಮಾತ್ರ ಸ್ಫುರಿಸಬಲ್ಲ ಎಷ್ಟೋ ಹೊಳಹುಗಳು ಕೃತಿಯ ಮೌಲಿಕತೆಯನ್ನು ಹೆಚ್ಚಿಸಿವೆ. ಈ...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the fourth volume, some character sketches of the Dewans of Mysore preceded by an account of the political framework of the State before Independence and followed by a review of the political conditions of the State after 1940. These remarkable leaders of Mysore lived in a period that spans from the mid-nineteenth century to the...

Bharatiya Kavya-mimamseya Hinnele is a monograph on Indian Aesthetics by Mahamahopadhyaya N. Ranganatha Sharma. The book discusses the history and significance of concepts pivotal to Indian literary theory. It is equally useful to the learned and the laity.

Sahitya-samhite is a collection of literary essays in Kannada. The book discusses aestheticians such as Ananda-vardhana and Rajashekhara; Sanskrit scholars such as Mena Ramakrishna Bhat, Sridhar Bhaskar Varnekar and K S Arjunwadkar; and Kannada litterateurs such as DVG, S L Bhyrappa and S R Ramaswamy. It has a foreword by Shatavadhani Dr. R Ganesh.

The Mahābhārata is the greatest epic in the world both in magnitude and profundity. A veritable cultural compendium of Bhārata-varṣa, it is a product of the creative genius of Maharṣi Kṛṣṇa-dvaipāyana Vyāsa. The epic captures the experiential wisdom of our civilization and all subsequent literary, artistic, and philosophical creations are indebted to it. To read the Mahābhārata is to...

Shiva Rama Krishna

சிவன். ராமன். கிருஷ்ணன்.
இந்திய பாரம்பரியத்தின் முப்பெரும் கதாநாயகர்கள்.
உயர் இந்தியாவில் தலைமுறைகள் பல கடந்தும் கடவுளர்களாக போற்றப்பட்டு வழிகாட்டிகளாக விளங்குபவர்கள்.
மனித ஒற்றுமை நூற்றாண்டுகால பரிணாம வளர்ச்சியின் பரிமாணம்.
தனிநபர்களாகவும், குடும்ப உறுப்பினர்களாகவும், சமுதாய பிரஜைகளாகவும் நாம் அனைவரும் பரிமளிக்கிறோம்.
சிவன் தனிமனித அடையாளமாக அமைகிறான்....

ऋतुभिः सह कवयः सदैव सम्बद्धाः। विशिष्य संस्कृतकवयः। यथा हि ऋतवः प्रतिसंवत्सरं प्रतिनवतामावहन्ति मानवेषु तथैव ऋतुवर्णनान्यपि काव्यरसिकेषु कामपि विच्छित्तिमातन्वते। ऋतुकल्याणं हि सत्यमिदमेव हृदि कृत्वा प्रवृत्तम्। नगरजीवनस्य यान्त्रिकतां मान्त्रिकतां च ध्वनदिदं चम्पूकाव्यं गद्यपद्यमिश्रितमिति सुव्यक्तमेव। ऐदम्पूर्वतया प्रायः पुरीपरिसरप्रसृतानाम् ऋतूनां विलासोऽत्र प्रपञ्चितः। बेङ्गलूरुनामके...

The Art and Science of Avadhānam in Sanskrit is a definitive work on Sāhityāvadhānam, a form of Indian classical art based on multitasking, lateral thinking, and extempore versification. Dotted throughout with tasteful examples, it expounds in great detail on the theory and practice of this unique performing art. It is as much a handbook of performance as it is an anthology of well-turned...

This anthology is a revised edition of the author's 1978 classic. This series of essays, containing his original research in various fields, throws light on the socio-cultural landscape of Tamil Nadu spanning several centuries. These compelling episodes will appeal to scholars and laymen alike.
“When superstitious mediaevalists mislead the country about its judicial past, we have to...

The cultural history of a nation, unlike the customary mainstream history, has a larger time-frame and encompasses the timeless ethos of a society undergirding the course of events and vicissitudes. A major key to the understanding of a society’s unique character is an appreciation of the far-reaching contributions by outstanding personalities of certain periods – especially in the realms of...

Prekṣaṇīyam is an anthology of essays on Indian classical dance and theatre authored by multifaceted scholar and creative genius, Śatāvadhānī Dr. R Ganesh. As a master of śāstra, a performing artiste (of the ancient art of Avadhānam), and a cultured rasika, he brings a unique, holistic perspective to every discussion. These essays deal with the philosophy, history, aesthetics, and practice of...

Yaugandharam

इदं किञ्चिद्यामलं काव्यं द्वयोः खण्डकाव्ययोः सङ्कलनरूपम्। रामानुरागानलं हि सीतापरित्यागाल्लक्ष्मणवियोगाच्च श्रीरामेणानुभूतं हृदयसङ्क्षोभं वर्णयति । वात्सल्यगोपालकं तु कदाचिद्भानूपरागसमये घटितं यशोदाश्रीकृष्णयोर्मेलनं वर्णयति । इदम्प्रथमतया संस्कृतसाहित्ये सम्पूर्णं काव्यं...

Vanitakavitotsavah

इदं खण्डकाव्यमान्तं मालिनीछन्दसोपनिबद्धं विलसति। मेनकाविश्वामित्रयोः समागमः, तत्फलतया शकुन्तलाया जननम्, मातापितृभ्यां त्यक्तस्य शिशोः कण्वमहर्षिणा परिपालनं चेति काव्यस्यास्येतिवृत्तसङ्क्षेपः।

Vaiphalyaphalam

इदं खण्डकाव्यमान्तं मालिनीछन्दसोपनिबद्धं विलसति। मेनकाविश्वामित्रयोः समागमः, तत्फलतया शकुन्तलाया जननम्, मातापितृभ्यां त्यक्तस्य शिशोः कण्वमहर्षिणा परिपालनं चेति काव्यस्यास्येतिवृत्तसङ्क्षेपः।

Nipunapraghunakam

इयं रचना दशसु रूपकेष्वन्यतमस्य भाणस्य निदर्शनतामुपैति। एकाङ्करूपकेऽस्मिन् शेखरकनामा चित्रोद्यमलेखकः केनापि हेतुना वियोगम् अनुभवतोश्चित्रलेखामिलिन्दकयोः समागमं सिसाधयिषुः कथामाकाशभाषणरूपेण निर्वहति।

Bharavatarastavah

अस्मिन् स्तोत्रकाव्ये भगवन्तं शिवं कविरभिष्टौति। वसन्ततिलकयोपनिबद्धस्य काव्यस्यास्य कविकृतम् उल्लाघनाभिधं व्याख्यानं च वर्तते।

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the third volume, some character sketches of great literary savants responsible for Kannada renaissance during the first half of the twentieth century. These remarkable...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the second volume, episodes from the lives of remarkable exponents of classical music and dance, traditional storytellers, thespians, and connoisseurs; as well as his...

Karnataka’s celebrated polymath, D V Gundappa brings together in the first volume, episodes from the lives of great writers, poets, literary aficionados, exemplars of public life, literary scholars, noble-hearted common folk, advocates...

Evolution of Mahabharata and Other Writings on the Epic is the English translation of S R Ramaswamy's 1972 Kannada classic 'Mahabharatada Belavanige' along with seven of his essays on the great epic. It tells the riveting...

Shiva-Rama-Krishna is an English adaptation of Śatāvadhāni Dr. R Ganesh's popular lecture series on the three great...

Bharatilochana

ಮಹಾಮಾಹೇಶ್ವರ ಅಭಿನವಗುಪ್ತ ಜಗತ್ತಿನ ವಿದ್ಯಾವಲಯದಲ್ಲಿ ಮರೆಯಲಾಗದ ಹೆಸರು. ಮುಖ್ಯವಾಗಿ ಶೈವದರ್ಶನ ಮತ್ತು ಸೌಂದರ್ಯಮೀಮಾಂಸೆಗಳ ಪರಮಾಚಾರ್ಯನಾಗಿ  ಸಾವಿರ ವರ್ಷಗಳಿಂದ ಇವನು ಜ್ಞಾನಪ್ರಪಂಚವನ್ನು ಪ್ರಭಾವಿಸುತ್ತಲೇ ಇದ್ದಾನೆ. ಭರತಮುನಿಯ ನಾಟ್ಯಶಾಸ್ತ್ರವನ್ನು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲು ಇವನೊಬ್ಬನೇ ನಮಗಿರುವ ಆಲಂಬನ. ಇದೇ ರೀತಿ ರಸಧ್ವನಿಸಿದ್ಧಾಂತವನ್ನು...

Vagarthavismayasvadah

“वागर्थविस्मयास्वादः” प्रमुखतया साहित्यशास्त्रतत्त्वानि विमृशति । अत्र सौन्दर्यर्यशास्त्रीयमूलतत्त्वानि यथा रस-ध्वनि-वक्रता-औचित्यादीनि सुनिपुणं परामृष्टानि प्रतिनवे चिकित्सकप्रज्ञाप्रकाशे। तदन्तर एव संस्कृतवाङ्मयस्य सामर्थ्यसमाविष्कारोऽपि विहितः। क्वचिदिव च्छन्दोमीमांसा च...

The Best of Hiriyanna

The Best of Hiriyanna is a collection of forty-eight essays by Prof. M. Hiriyanna that sheds new light on Sanskrit Literature, Indian...

Stories Behind Verses

Stories Behind Verses is a remarkable collection of over a hundred anecdotes, each of which captures a story behind the composition of a Sanskrit verse. Collected over several years from...