October 2024

अरब के यात्री सुलेमान अत्ताज़िर और अल मसूदी ने भोज की सेना की सदा युद्ध के लिए तैयार रहने वाले गुणों की तथा उसके राज्य की समृद्धि और बाहुल्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। उन्होंने इस बात पर दुःख भी व्यक्त किया है कि वह इस्लाम का अजेय शत्रु है। भोज का पुत्र महेन्द्रपाल उसका सुयोग्य उत्तराधिकारी था और उसने साम्राज्य का और भी विस्तार किया था। उसने प्रसिद्ध विद्वान, कवि तथा गुणी राजशेखर को प्रश्रय दिया था। उसके शासन काल में कला, साहित्य, शिल्प,...
Gokhale Institute of Public Affairs, an organization DVG built and nurtured, has made quiet but sustained efforts to educate people in all matters of collective living. Apart from conducting civic surveys, preparing reports for the perusal of Government and organizing lectures, it has played an active part in times of crisis. For instance, during the Indo-China war, it exhorted all its members and the people at large to contribute to the...
Once, when the precious gem was being brought upon a golden plate, an eagle mistook it for a piece of flesh and flew away with it. The king chased behind the bird and even before he could shoot an arrow at it, it went beyond the bow’s rage. Even as everyone had lost hopes of retrieving the gem, a huntress comes there the gem and also the arrow which had killed the bird. The king is surprised upon seeing the inscription on the arrow – Āyu, the...
Himalaya
योद्धा राजवंशों का साहसिक प्रतिरोधक युग यदि कोई साम्राज्य 220-250 वर्षों तक बना रह सकता है तो उसे एक सफल साम्राज्य कहा जा सकता है। आज के भारत के चार प्रदेशों के औसत क्षेत्रफल वाले विस्तार के भौगोलिक क्षेत्र में फैले सुरक्षित तथा सक्रिय शासन को एक शक्तिशाली साम्राज्य माना जा सकता है। इस पैमाने के अनुसार भारत के कुछ ही राजवंशों को श्रेष्ठता प्रदान की जा सकती है। इनमें मौर्य, गुप्त, चालुक्य, राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा विजयनगर के राजवंश सम्मिलित है।...
Volume Eight (1963–1967) Readers of these volumes would surely know that DVG looked upon life as an undivided whole. This worldview enabled him to celebrate the arts, literature and all the fine graces of human life that are enriching on a personal level, and involve in socio-political activities that are beneficent at the collective level – all with the same zest and tenacity. What that literary savant, N Raghunathan wrote in a different...
Urvashi-Pururavas
The Vikramorvaśīyam, like the Mālavikāgnimitram consists of five acts. The following the summary of its plot King Purūrava, who was returning after having finished his sūryopāsana, hears that a rākṣasa named Keśi had abducted the apsarā Urvaśī and her friend Citralekhā. He immediately heads to rescue them and is successful in his endeavour. The apsarās reunite in the Hemakūṭa Mountain and go back to devaloka, accompanied by a gandharva named...
तीन बार कुब्ज विष्णुवर्धन ने अपने भाई पुलकेशी के विरुद्ध विद्रोह किया और तीनों ही बार पुलकेशी ने उसे क्षमा कर दिया। न तो वह अपने दुष्ट काका के प्रति आवश्यक कठोरता दिखा पाया और न अपने मनमौजी पुत्रों पर अंकुश रख सका। इन सभी कारणों से दुर्भाग्य पूर्ण परिणाम सामने आये। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार काका मंगलेश, कुब्ज विष्णुवर्धन को सदैव पुलकेशी के विरुद्ध भड़काता रहता था। पुलकेशी चाहता तो इन सभी स्थितियों से पूर्णतः स्वयं को बचा सकता था यदि वह...
ಕಾವ್ಯ-ನಾಟ್ಯ ಅನುಭಾವವಿಭಾವಾನಾಂ ವರ್ಣನಾ ಕಾವ್ಯಮುಚ್ಯತೇ | ತೇಷಾಮೇವ ಪ್ರಯೋಗಸ್ತು ನಾಟ್ಯಂ ಗೀತಾದಿರಂಜಿತಮ್ || (ವ್ಯಕ್ತಿವಿವೇಕ, ಪು. ೯೬) ಪ್ರಯೋಗತ್ವಮನಾಪನ್ನೇ ಕಾವ್ಯೇ ನಾಸ್ವಾದಸಂಭವಃ || ವರ್ಣನೋತ್ಕಲಿಕಾಭೋಗಪ್ರೌಢೋಕ್ತ್ಯಾ[1] ಸಮ್ಯಗರ್ಪಿತಾಃ | ಉದ್ಯಾನಕಾಂತಾಚಂದ್ರಾದ್ಯಾ ಭಾವಾಃ ಪ್ರತ್ಯಕ್ಷವತ್ ಸ್ಫುಟಾಃ || (ಅಭಿನವಭಾರತೀ, ಸಂ. ೧, ಪು. ೨೯೧-೯೨) ವಿಭಾವ ಮತ್ತು ಅನುಭಾವಗಳ ವಾಗ್ರೂಪದ ವರ್ಣನೆಯನ್ನು ಕಾವ್ಯವೆನ್ನುತ್ತಾರೆ. ಇವುಗಳನ್ನೇ ಗೀತ-ವಾದ್ಯ-ನರ್ತನಾದಿಗಳ ಮೂಲಕ ಪುಷ್ಟಿಗೊಳಿಸಿ ರಂಗಕ್ಕೇರಿಸಿದರೆ ಆ ಪ್ರಸ್ತುತಿ ನಾಟ್ಯವೆನಿಸುತ್ತದೆ...
Pātra-prāśastya – Excellence of Character Pātra-viśeṣanyastaṃ guṇāntaraṃ vrajati śilpam-ādhātuḥ! Jalam-iva samudra-śuktau muktāphalatāṃ payodasya ॥ Act 1, verse 6 The skill of a teacher who imparts his knowledge to a worthy student attains greater excellence, just as a water droplet from a cloud gets, when it falls into a oyster, gets converted into a precious pearl. Knowledge and Livelihood yasyāgamaḥ kevalajīvikāyai taṃ jñānapaṇyaṃ...
समुद्री घाट क्षेत्र के अनेक शत्रुओं को पुलकेशी ने हराया। उसने अनेक राष्ट्रकूटों पर भी विजय प्राप्त की, उसने सातवाहनों को समाप्त किया, उसने पल्लव वंशी महेन्द्रवर्मा तक को निष्प्रभावी कर दिया। उसने न केवल कांची तक धावा बोला अपितु कन्याकुमारी तक अपनी संप्रभुता को स्थापित किया। समस्त दक्षिण भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के उपरांत पुलकेशी ने नर्मदा तट पर हर्षवर्धन को आसानी से हरा दिया। हर्षवर्धन जो ‘उत्तरापथ परमेश्वर’ था पूरे देश का सम्राट बनने...