शौर्य काल
पिछले कुछ समय में लिखे गये भारतीय इतिहास में अनेक घटनाओं तथा प्रकरणों को अवांछित रूप से सम्मान प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बतलाया गया है। ऐसे अनेक विवरण दिये गये है। जिनका हमारे इतिहास में अस्तित्व ही नही था और इस प्रकार कपट पूर्वक लोगों को भ्रमित तथा गुमराह किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे झूठे कथन सत्य को जानने में सबसे बडी बाधा उपस्थित करते हैं। आज की हमारी अनेक इतिहास की पाठ्यपुस्तके इसी प्रकार के कपटयुक्त लेखन के वर्ग में आती है।
हमारे देश में अनेक महानायकों तथा महापुरुषों ने जन्म लिया है, अनेक स्वयं में ही प्रकाश पुंज की भाँति सबके मार्गदर्शक बने,। रूस के भूभाग को छोड़ दें तो कभी भारत पूरे यूरोप से भी बडा था तथा स्वयं में एक महाद्वीप जैसा था।
यद्यपि आज चीन, भारत से क्षेत्रफल में बड़ा है किंतु इसके कई भूभाग बंजर हैं, कई उजाड़ है, न तो वहां कोई संसाधन है और न कोई सांस्कृतिक वैभव है। चीन के अनेक भूभाग सूखे अथवा बर्फीले रेगिस्तान हैं जहां बहुत कम आबादी है तथा इसका इतिहास भी हिंसक रहा है।
चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार बिना किसी शस्त्रबल अथवा लोभ-लालच के बल पर हुआ है और उसने वहां महत्ता प्राप्त की। इसके यह स्वयं सिद्ध है कि सनातन धर्म की प्राचीन परम्परा से जन्मे बौद्ध धर्म की सांस्कृतिक जीवन शैली ने चीन के निवासियों को आकर्षित किया था।
विश्व में चीन और भारत, यह दो ही देश ऐसे हैं जो आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति, परंपरागत जीवन शैली, सामाजिक वैविध्य आदि की पहचान बनाये हुए है। उसमें भी प्राचीन समय से ही चीन संस्कृति तथा अध्यात्म के लिए भारतीय मार्गदर्शन की अपेक्षा करता रहा है[1]। वास्तव में चीन बाहुल्य का देश नहीं है। यदि कोई देश सतत रूप से अन्य देशों पर आक्रमण करता रहता है तो यह स्पष्ट है कि वह सांस्कृतिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है। अन्य शब्दों में वहाँ व्यापक विश्व-दृष्टि का अभाव है। अन्य देशों पर पाशविक हिंसायुक्त सतत आक्रमण कारी वृत्ति का एक मुख्य कारण प्राकृतिक संसाधनों को बलपूर्वक लूटना भी है।
भारत ने कभी भी किसी अन्य देश पर न तो आक्रमण किया न संपदा हेतु अन्य देश में लूटपाट की। हमने कभी भी किसी पर आक्रमण किया है। इसका प्रमाण न तो हमारे देश में उपलब्ध है और न किसी अन्य देश के अभिलेखों में ! इसका कारण सुस्पष्ट है :- भारत पूर्ण तथा प्राकृतिक संसाधनों से युक्त, बाहुल्यता का देश है जहां अध्यात्म पोषित एक समृद्ध संस्कृति की जड़ें बडी दृढ़ता से जमी हुई है। हमारे ही देश में अनेक महान सम्राटों तथा महानायकों ने विशाल सीमा में फैले साम्राज्यों पर शासन किया है यद्यपि आज हम उनके अस्तित्व से भी अनजान है। हमारे इन महानायकों में से किसी एक को भी इस प्रकार प्रचारित नहीं किया गया जैसे यूरोप के आटोवान बिस्मार्क, ग्वेसेपी गैरीबाल्डी या नेपोलियन बोनापार्ट जैसे इक्का दुक्का छोटे शासकों को किया गया।
विस्मृत महानायक
पृथ्वीराज चौहान के पराभव के उपरांत दिल्ली पर मुस्लिम शासकों ने अधिकार कर लिया था जिसे हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने (हेमू के नाम से प्रसिद्ध) वापस छीन लिया। हेमू एक सामान्य फल-सब्जी का व्यापारी था किंतु अपनी वीरता के कारण वह एक साहसी योद्धा बना और अन्ततः राजा बन गया। अपने शौर्य और नेतृत्व के दम पर उसने हुमायूं को हराकर शासन पर अधिकार प्राप्त किया था। बाद में अकबर ने अपने संरक्षक बैरम खान की सहायता से हेमचन्द्र से युद्ध कर पुनः साम्राज्य पाने में सफलता प्राप्त की थी। अधिकांश इतिहासकार इस वीर योद्धा हिन्दू राजा के बारे में जिसने दौ सौ वर्षों से इस्लामिक आधिपत्य में रहे दिल्ली के साम्राज्य पर विजय प्राप्त की थी के विवरण को दर्शाते ही नहीं है, और इसके विपरीत उसे मात्र एक विद्रोही के रूप में ही प्रस्तुत करते है तथा उसके पूरे नाम हेमचन्द्र विक्रमादित्य से भी उसे नहीं संबोधित करते है साथ ही उसके असाधारण शौर्य को छिपाने का प्रयास करते हैं।
हमारे योग्य कवियों, विदेशी यात्रियों तथा कुछ विशिष्ट दार्शनिक मतों के आचार्यों के विवरणों से हमें कुछ महत्वपूर्ण राजाओं के संबंध में जानकारियां प्राप्त होती है तथापि ऐसे अनेक इससे भी अधिक प्रतापी तथा शक्तिशाली राजाओं को कुछ भी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं हो पाई।
वल्मीकप्रभवेण रामनृपतिर्व्यासेन धर्मात्मजो
व्याख्यातः किल कालिदासकविना श्रीविक्रमाङ्को नृपः।
भोजश्चित्तपबिल्हणप्रभृतिभिः कर्णोऽपि विद्यापतेः
ख्यातिं यान्ति नरेश्वराः कविवरैः स्फारैर्न भेरीरवैः॥
वाल्मीकि के कारण राम प्रसिद्ध हो गये, वेदव्यास के कारण धर्मराज ने प्रसिद्धि पाई, विक्रमादित्य का नाम कालिदास के कारण प्रसिद्ध हो पाया, भोज की प्रसिद्धि चित्तपा, बिल्हन तथा अन्य के कारण हुई। गुजरात के राजा कर्णदेव, विद्यापति बिल्हण के नाटक ‘कर्ण-सुन्दरी’ के कारण प्रसिद्ध हो पाये। अर्थात राजाओं की प्रसिद्धि कवियों की कृतियों से हुई न कि उनकी विजय दुन्दुभी से !!
यदि रविकीर्ति न होता तो शायद हम पुलकेशी को कभी जाना भी नहीं पाते । आइहोल के ऊपर के मंदिर परिसर में पैंतीस कविताऍ पत्थरों पर उत्कीर्ण है जिन्हे रविकीर्ति ने राजा पुलकेशी के संबंध में रचा है। इन्ही शिलालेखों से हमें पुलकेशी की महानता का पता मिलता है। कुछ विवरण हमें यात्री ह्वेनसांग के ‘सियुकी’ नामक यात्रा विवरणिका से ज्ञात हो पाता है। यदि आज हम हर्षवर्धन को एक महान सम्राट के रूप में स्मरण कर पाते है तो इसका श्रेय बाणभट्ट की रचना और ह्वेनसांग के विवरण को दिया जाना चाहिए। किंतु शशांक जैसे भी बड़े राजा हुए जिनके प्रशंसा गान करने वाला कोई कवि नहीं हुआ।
शशांक :- साहस – शिरोमणि
शशांक ने पालों से भी पहले बंगाल पर शासन किया था। शशांक, हर्षवर्धन के पिता तथा बडे भाई का प्रतिस्पर्धी था। इसी कारण से बाणभट्ट ने अपनी कृति ‘हर्ष चरित’ में शशांक को कोई महत्व प्रदान नहीं किया जिसका कि वह अधिकारी था। रोहतासगढ़ के अभिलेख में राजा शशांक को ‘श्रीमहा सामंत’ का संबोधन दिया गया है। उसने कान्यकुब्ज (कन्नौज) के मौखरी राजा से युद्ध किया था। वह मूलतः गौड़ देश (बंगाल) का निवासी था। उसने मौखरी राजा ग्रहवर्मा को मार दिया था जो हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का पति था। हर्षवर्धन का बडा भाई राज्यवर्धन शशांक के विरुद्ध युद्ध में हार गया था। हर्षवर्धन ने भी शशांक से युद्ध किया था किंतु इस संबंध में कुछ भी निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता है क्योंकि बाणभट्ट ने ‘हर्ष चरित’ में इसका कुछ भी विवरण नहीं दिया है। किंतु बौद्ध ग्रंथ ‘मंजुश्री’ के अनुसार हर्षवर्धन के शशांक पर आक्रमण करने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और न वह शशांक पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण कर पाया। ऐतिहासिक अभिलेखों के अभाव में हम शशांक जैसे महानायक योद्धा सम्राटों के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने से वंचित रह जाते है। हमारे लोगों ने इतिहास की अनेक घटनाओं को सही ढंग से नहीं लिखा है न संग्रहित किया है तथा हमारे पारंपरिक लेखन में कुछ विवरण तो पूर्ण रूप से अप्रासंगिक हैं जिस में कई अनुपयोगी विस्तृत विवरण दिया गया है। इस कारण से हमारे इतिहासकारों को व्यवस्थित विवरण तथा अभिलेखों के अभाव में इतिहास लेखन के कार्य में अधिकांश कठिनाइयाँ आती रही है[2]।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]चीनी राजनेता हू-शीह् का प्रसिद्ध कथन है – “भारत ने चीन को सांस्कृतिक रूप से बीस शताब्दियों से बिना एक भी सैनिक को सीमा पार भेज कर जीत लिया है और उसे प्रभावित कर रहा है”
[2]यहां यह बताना भी समीचीन होगा कि हमारे अनेक बहुमूल्य अभिलेख हिंसक आक्रांताओं द्वारा भी नष्ट कर दिये गये।