पाप्ड्या, चोल एवं चेर
चोल लोगों का शासन तमिलनाडु के पूर्वी तट पर था, पाण्ड्याओं का दक्षिण भारत के मध्य क्षेत्र में तथा चेर लोगों ने पश्चिमी तट पर शासन किया । इन तीनों को ‘मुवेन्दिदर’ (तीन शासक) के नाम से जाना जाता रहा है। जहां चेर साम्राज्य था वह क्षेत्र आज का केरल प्रांत है। केरल द्वारा क्षात्र परंपरा को कोई सीधा योगदान नहीं दिया गया तथापि ज्ञानार्जन, अध्ययन और अध्यापन को पोषित करने और उसके अनुकूल परिवेश प्रदान कर उसने क्षात्र के एक अन्य पक्ष को अत्यधिक दृढ़ता प्रदान की।
जब पूरे भारत वर्ष में हिंसक मुस्लिम संप्रदाय के आघातों से त्राहि त्राहि मची हुई थी और वे हमारे विश्व विद्यालयों, लाखों अनमोल ग्रंथों को जला रहे थे तथा हमारे भव्य शिक्षा केंद्रों को नष्ट कर रहे थे, ऐसे विषम समय में केरल ही एकमात्र ऐसा स्थान था जहां हमारे अनेक मूल्यवान, दुर्लभ तथा पारम्परिक ग्रंथों को सुरक्षित रूप से संग्रहित कर रखा जा सकता था। मात्र केरल के कारण हमारे अनेक प्रतिभासंपन्न विद्वानों जैसे कि – भरतमुनि, कौटिल्य, भोज, अभिनवगुप्त, भास, मंख, शक्तिभद्र, मण्डन मिश्र आदि के द्वारा रचित असंख्य कृतियों को बचाकर उनका अस्तित्व बना रहा। इसके अतिरिक्त केरल के बंदर गाहों द्वारा भारत के निर्यात व व्यवसाय का महत्त्वपूर्ण विकास हुआ जहां से काली मिर्च, दालचीनी, सुपारी तथा अन्य मसालों का निर्यात किया जाता था। केरल का एक अन्य योगदान यह भी है कि उसने विविध कला विधाओं तथा श्रौता-आगम परम्परा को संरक्षित रखा। यह भी स्मरणीय सत्य है कि केरल के विद्वानों ने बहुत व्यापक स्तर पर आयुर्वेद तथा गणित के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किये हैं।
चेर लोगों का यह विशिष्ट गुण रहा है कि वे समाज में संतुलन तथा समन्वय को स्थापित करते रहे हैं। उस समय में, एक ओर से समुद्र तथा दूसरी ओर से पश्चिमी घाट के मध्य वसे केरल में अधिक जन संख्या में लोग नही रहते थे। वास्को डि गामा के आगमन तक केरल में तीव्र सक्रियता का अभाव था। वास्को डी गामा ने केरल तथा वहां के निवासियों पर भयंकर अत्याचार किये। बाद में मैसूर के टीपू सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र के हजारों लोगों की हत्या करते हुए लाखों लोगों का बलपूर्वक इस्लामीकरण किया। बीसवीं शताब्दी में गांधी की निपट मूर्खता तथा अदूर दर्शिता के कारण खिलाफत आंदोलन के समय केरल को कुख्यात मोपला दंगों को झेलना पड़ा। यह केरल को दिया गया एक क्रूर और निर्गम उपहार है जिसने अन्य सभी मत-पंथों तथा धार्मिक संप्रदायों के लिए केरल में नये द्वार खोल दिये। इन तीनों अवसरों पर केरल को अकथनीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है और ऐसे मुश्किल समय में भी केरल में कोई प्रखर क्षात्र चेतना युक्त नेतृत्त्व देखने में नहीं आया। संक्षेप में कहा जा सकता है कि चेर लोगों में शत्रुओं को रोक पाने की दृढ़ता का अभाव था। वे मात्र शांतिकाल के अच्छे शासक थे।
जहां तक पाण्ड्या राजाओं का प्रश्न है न तो वे महान उपलब्धियों को पा सके और न गहरे पतन की ओर गिरे। उन्होंने संगम कवियों को प्रश्रय तथा पोषण देकर भारतीय संस्कृति तथा साहित्य के अपना उचित योगदान दिया था।
पूर्वी तट के प्रथम शासक पल्लव थे। बाद में नौंवी से चौदहवीं शताब्दी तक चोल लोगों ने शासन संभाल लिया था। इनमें भी मध्य की दो शताब्दियॉ चोल शासन का शिखर-काल थी। इस राजवंश के दो प्रमुख सम्राट राजराज चोल और उसका पुत्र राजेन्द्र चोल प्रथम रहे हैं। राजराज चोल एक साहसी योद्धा था। ग्यारहवी शताब्दी के प्रारम्भ काल में तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर जो अब विश्व प्रसिद्ध है, उसी के शासन काल में बना था।
सन् 1012 में ही राजेन्द्रचोल प्रथम को युवराज घोषित कर दिया गया था और पिता के मरणोपरांत उसने साम्राज्य का शासन सम्भाल लिया। वह कई सम्मानजनक नामों से जाना जाता है जैसे – गङ्गैकोंड चोल, गुडिकोण्ड चोल, कटारण्कोण्ड चोल और पंडित चोल आदि। उसके पिता ने उसे बचपन से ही बहुत अच्छे ढंग से प्रशिक्षित किया था। राजराज चोल की एक पुत्री भी थी जिसका विवाह वेंगी चालुक्य विनयादित्य के साथ हुआ था। उसका नाम कुन्दवदेवी था।
तेलगू तथा तमिलों के बीच का संबंध राजेन्द्र चोल के शासन में और अधिक दृढ़ हुआ। राजेन्द्र चोल ने अपनी पुत्री अम्मांगदेवी का विवाह कुन्दवदेवी के पुत्र राजराज नरेंद्र के साथ कर दिया। बाद में राजेंद्र चोल के पुत्र राजेन्द्र द्वितीय की पुत्री मधुरांतकी का पाणिग्रहण राजराज नरेंद्र के पुत्र राजेन्द्र देव के साथ हुआ। चोल लोगों ने कलिंग के गंग और वेंगी के चालुक्यों से वैवाहिक संबंधों को बनाए रखा। चालुक्य विक्रमादित्य छटा का विवाह भी चोल वंशीय कन्या से हुआ था।
संक्षेप में विस्तृत दक्षिणापथ (दक्षिण भारत) में उन दिनों के योद्धा लोगों में शौर्य अभियान का गुण दर्शनीय था।
चोल लोगों का जो सबसे विलक्षण गुण है वह उनका अदम्य संकल्प बल है। मुवेन्दिररों में यह संकल्प बल सबसे अधिक रूप से प्रदर्शित हुआ है। वे तब तक शांति से नहीं बैठते थे जब तक वे शत्रु को मिट्टी में नहीं मिला देते थे। वस्तुतः यह उस समय की आवश्यकता भी थी।
यदि सनातन चेतना दक्षिण पूर्वी एशिया में फैली और आज भी जीवित है तो यह राजराज तथा राजेन्द्र चोल के प्रयासों का प्रतिफल है । अन्य हिन्दू राज वंशों में जिस संकट में साहस दिखाने तथा अन्तर्देशीय अभियानों पर जाने की भावना का अभाव रहा वह चोल लोगों में विशेष रूप से उपस्थित रहा।
वे जावा, सुमात्रा तथा लंका विजय के अभियान पर जाते रहे। अपने पथ प्रदर्शक अभियान की सफलता जिसमें राजेन्द्र चोल दूर गंगातट तक पहुंचा था उसके स्मरणार्थ-आयोजनार्थ उसने एक नये शहर ‘गङ्गैकोंडचोलपुरं’ का निर्माण किया था। उसने पाण्ड्याओं तथा केरलों को परास्त किया था। वास्तव में संपूर्ण भारतवर्ष में चोल लोगों की नौसेना सर्वश्रेष्ठ थी जिसमें सभी आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित हजारों युद्धपोत के नौसेना बेड़े थे।
हमारी इतिहास की पुस्तको में भारतीय नौसेना की शक्ति तथा सामुद्रिक व्यापार ब विपणन को पूरी तरह से उपेक्षित कर उसका कोई भी संदर्भ नही दिया गया है। ग्यारहवी शताब्दी के प्रारम्भ में भोजदेव ने जहाज निर्माण को एक व्यवस्थित विज्ञान के रूप में स्थापित कर दिया था। उसकी श्रेष्ठतम कृति ‘युक्तिकल्पतरु’ इस तथ्य का श्रेष्ठतम प्रमाण है। इस समय तक यूरोप के किसी भी देश में जहाज निर्माण संबंधी अथवा इससे संबंधित प्रौद्योगिकी के बारे में कोई पुस्तकीय जानकारी उपलब्ध नहीं थी[1]।
चोलाओं की तरह ही आंध्रा तथा ओड्र (उडिसा) में तेजी से जहाज निर्माण विकसित हुआ और इसी प्रकार गुजरात के गुर्जरों ने जहाज निर्माण में विशेषज्ञता प्राप्त की थी।
राजेन्द्र चोल ने भूमि सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित किया था। कणक्कुपिल्लै (करणीक या लेखपाल) की वंश परम्परा ने अठारहवीं शताब्दी तक इसका त्रुटि हीन अभिलेख सुरक्षित रखा था। उन्होंने उपजाऊ खेतों की जमीन की पूरी गणना कर तदनुसार कराधान किया था। यह व्यवस्था सन् 1000 तक अस्तित्व में आ गई थी।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]इसके बारे मे और जानकारी के लिये राधाकुमुद मुखर्जी के कृति ‘ए हिस्टोरि आफ़् इण्डियन् शिप्पिन्ग’ देखिए