बुद्ध के समय के सोलह बडे राज्य निम्नानुसार थेः-
- अंग
- मगध
- काशी
- कोसल
- वृजिगण (वज्जीगण)[1]
- मल्लगण[2]
- चेदी[3]
- वत्स (बच्च)[4]
- कुरु
- पांचाल
- मत्स्य (मच्च)
- शूरसेन[5]
- अश्मक[6]
- अवन्ती[7]
- गांधार और
- काम्बोज
इनके अतिरिक्त भी मालवा, मद्र, यौधेय, कोलीय तथा शाक्य जैसे कुछ गणतंत्र थे। जैन ग्रंथों में इनका अनेकबार उल्लेख किया गया है। उस समय भारत कईं छोटे छोटे क्षेत्रों में बट गया था जो अल्पकालिक साम्राज्य या जन जातीय शासकों द्वारा शासित थे। इसके उपरांत भी लोगों के मन – मस्तिष्क में सदैव ही भारत के एक राष्ट्रीय इकाई के स्वरुप की चेतना बनी रही। वर्तमान समय में लोग अपना इतिहास भूल गये है और इसलिए वे इस गलत धारणा के शिकार हो रहे है कि ब्रिटिश साम्राज्य के कारण हम भारतीयों को एक राष्ट्रीय अस्मिता प्राप्त हुई।
हमारी परम्परा में ऋगवेद के ऐतरेय ब्राह्मण से प्रारम्भ करते हुए प्राचीन तम पुराणों में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के विवरण – साम्राज्य, भोज्य (राज्य), वैराज्य (विस्तारित संप्रभुता), पारमेष्ठिक-राज्य (सर्वोच्च साम्राज्य) के साथ भारत को एक समग्र इकाई मानने के अनेक उद्धरण दिये गये है[8]। इसके अतिरिक्त पवित्र स्थानों की तीर्थ यात्राओं के वर्णन में लगाकर संतों, राजाओ और विद्वानों की विजय यात्राओं के वर्णन में भी पुराणों में इस परम्परा वादी विचार की पुष्टि होती है कि तीर्थ यात्रा में भारत के सभी सुदूर छोरों पर स्थित तीर्थों की यात्रा की जानी चाहिए। ऐसा मात्र पुराण और इतिहास में ही नहीं है अपितु ऐतिहासिक तथा वर्तमान घटनाओं से भी प्रकट होता है। यद्यपि पूरा भूभाग अनेक छोटे राज्यों में विभिन्न राजाओं द्वारा शासित था फिर भी एक भारत की भावना सदैव विद्यमान थी और एक महान सम्राट जो पूरे भूभाग का सर्वोपरि शासक हो, की आवश्यकता को अनुभव किया जाता रहा।
मगध
इस पृष्ठभूमि में अब हम मगध साम्राज्य का विवेचन करते हैं। इस भूभाग पर सबसे पहले शासन करने वाले ‘शिशुनाग’ वंश के लोग थे, उनके बाद ‘नंद’ वंश के लोग थे, नंद साम्राज्य का अंतिम सम्राट धनानंद था। उसी के शासन काल में महापद्मनंद से लगाकर सुनंद तक सभी मर चुके थे[9]। धनानंद बडा योद्धा था। इसी के समय में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। इस संदर्भ में मै यहा एक अतिरिक्त उल्लेख करना चाहुंगा। वर्तमान समय के कुछ विद्वानों जैसे – सीताराम साठे, एन. एस. राजाराम और एम. वी. आर. शास्त्री के अनुसार ‘संड्रोकोट्टोस’ (चन्द्रगुप्त का ग्रीक उच्चारण) जिसका उल्लेख प्लिनी, हेरोदोतस और मेगस्थनीस ने किया है वह मौर्य साम्राज्य का चन्द्रगुप्त न हो कर गुप्त साम्राज्य का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य है। यदि हम इसे सही माने तो इतिहास में सात सौ वर्ष का परिवर्तन हो जाता है। मुझे इस संबंध में ठोस प्रमाण अभी भी प्राप्त करना है। तब तक मै हमारे स्कूल-कालेजो में पढाये जाने वाले ‘संड्रोकोट्टोस’ के संदर्भ का आधार मान कर आगे बढ़ता हूं। किंतु यह सुनिश्चित है कि भारत का पहला आक्रमणकारी सिकंदर था[10]।
सिकंदर का प्रभाव
ग्रीक इतिहास में वर्णित हेराक्लिस और डायोनोसिस वास्तविक न हो कर ग्रीक दंतकथाओं के चरित्र है। हेराक्लिस, साहसिक घटनाओं सहित सभी ग्रीक मानदण्डों को पूर्ण करने वाला प्रतीक पुरुष है। उसने अनेक चमत्कार किये थे। उसकी मुख्य बारह साहसिक उपलब्धियों में – ‘होई हेराक्लिअस एथलोई’ में उसके भारत आने का कोई भी उल्लेख नहीं है। डायोनोसिस – रंगमंच, धार्मिकध्यान, शराब तथा शराब बनाने वालों के ग्रीक देवता है। रोमन कथाओं के अनुसार उन्हें बाकस कहा गया है और भगवान माना गया है। वे पूर्वीय देशों से जुडे थे। विद्वानों के मतानुसार ग्रीक लोगों ने उन्हे भगवान माना और इस प्रकार वे उनकी कथाओं में देवरुप में वर्णित हैं। अन्य शब्दों में यह एक दार्शनिक तथा पूजापद्धति से संबंधित तथ्य है। डायोनोसिस ने कभी भी भारत के विरुद्ध कोई कदम नही उठाया।
ग्रीक आक्रमणकारियों में सिकंदर पहला व्यक्ति था जिसने भारत पर आक्रमण किया। यद्यपि उसके आक्रमण का क्षेत्र भारत का पश्चिमी सीमा वर्ती भूभाग मात्र ही था क्योंकी सिंधु नदी पार कर वह बहुत कठिनाई से वितस्ता (झेलम) नदी तक ही पहुंच पाया। वितस्ता नदी कश्मीर से बह कर सिंधु नदी में मिलती है। सिकंदर ने वितस्ता पार की हो इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। हमारी परंपरा में सिकंदर के साहस के संबंध में प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं कहा गया है।
इसके विपरीत भविष्योत्तरपुराण तथा अन्य ग्रथों में इसाइयों तथा इस्लाम आक्रांताओं की चरित्रहीनता और दुष्टता का वर्णन हैं। उनकी धर्मांधता तथा धन लोलुपता ने किस प्रकार हमारे देश को आतंकित किया था इसका उल्लेख सत्रहवी शताब्दी के प्रसिद्ध वेन्कटद्ध्वरी लिखित ग्रंथ ‘विश्वगुणादर्शचम्पू’ में किया गया है। इस ग्रंथ में उन्हे ‘करुणा विहीन[11]’ बतलोत हुए उनके मद्रास प्रांत के कुशासन का वर्णन है। इसके तीनसौ वर्ष पूर्व की कृति ‘गंगादेवी की मधुराविजय’ में मुस्लिमों द्वारा किस विभत्सता के साथ दक्षिण भारत में विनाश का ताण्डव किया गया इसका विवरण है। इसी प्रकार के अनेक लेखन हमें कवियों, विद्धानों और नाटकों में मिलते है। किंतु पुराणों या अन्यत्र हमें कहीं भी ग्रीक – विशेषकर सिकंदर के आक्रमण का कोई उल्लेख प्राप्त नही होता है।
गर्ग संहिता के युगपुराण अध्याय में यद्यपि ग्रीक आक्रमण का प्रसंग दिया गया है तथापि उसका सिकंदर से कोई संबंध नही है और इस ग्रंथ की प्रामाणिकता भी संदेहास्पद है। मिलिन्द पन्हा[12] की कृति तथा पतंजली के महाभाष्य[13] के साथ साथ हीलियोडोरस[14] तथा थियोडोरस[15] के शब्दों के अनुसार ग्रीस तथा भारत के मध्य के संबंधों को हम स्पष्टतः देख सकते है। इसके साथ हमें यह नही भूलना है कि यह सब सनातन धर्म से प्रभावित गतिविधियों का ही भाग है।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]यह गण तंत्र था जिसकी राजधानी वैशाली थी।
[2]यह दूसरा गणतंत्र था जो आजके बिहास के निकट हिमालय के छोर पर था
[3]मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास उत्तरप्रदेश का सीमावर्ती क्षेत्र
[4]यह चेदी के बिल्कुल पास था
[5]मथुरा का निकटवर्ती क्षेत्र
[6]आज के आंध्र और महाराष्ट्र का सीमा का गोदावरी नदी का तटीय क्षेत्र
[7]यह विदर्भ क्षेत्र में था
[8]उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र संततिः || (विष्णुपुराण 2.3.1)
[9]पारम्परिक कथाओं के अनुसार सभी नौ नंद समकालीन थे। कुछ कहानियों के अनुसार महापद्मनंद और उसके आठपुत्र थे तथा कुछ विद्वानों के अनुसार सभी नौ नंद, महापद्मनंद के पुत्र थे। यह निर्विवादित है कि धनानंद अंतिम शासक था।
[10]कुछ अभिलेखों के अनुसार (ईसा पूर्व 550-486) डेरियस ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर आक्रमण किया था तथापि उसका कोई प्रभाव नही रहा।
[11]हूणाः करुणाहीनाः (विश्वगुणादर्शचम्पू 262)
[12]इस ग्रंथ में ग्रीक राजा मेनेन्दर 1 (बेक्ट्रीया) को बौद्ध भिक्षु नागसेना द्वारा दिये गये उपदेश का वर्णन है।
[13]इस कृति में ‘डेमेट्रियस’ का संभावित संदर्भ है।
[14]विदिशा में ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण प्रसिद्ध अभिलेख से
[15]खरोष्टी लिपि में उत्कीर्ण बौद्ध अभिलेख से